Saturday, 20 May 2017

ना जाने किस मुकाम पर आ गई हूँ
हो गई हूँ पवित्र एक सति सी
या अपवित्र एक वेश्या सी
अब तक जो थी भोली बच्ची सी ।

ना जाने कहा है ईस मुकाम का डेरा
ना जाने कब होगा एक सुंदर सवेरा
ना जाने क्या हो पाएगी राह एकसी
ना जाने कब होगी सीता राम कि ।

सब्र हि इन्तेहा है
सब्र हि है माया
सब्र हि जवाब है
और सब्र हि काया ।

काश की लिख सकती मै और भी
काश की शब्द होते मेरे पास भी
काश की सोच सकती दैनिक कार्य से ऊपर उठकर
काश की बन सकती सीता राम की ।

इतिहास ने भी दिया जवाब है
ना राम ने कभी वचन तोडा है
ना सीता ने कभी धर्म छोडा है
और ना ही कभी बनी है सीता राम कि ।

हिमानी


PS- I can't find an appropriate title for this poem. This is my first poem in Hindi. And I am like reading these lines again and again... 

9 comments:

  1. विलोम उत्प्रेक्षा

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    1. Iska kya meaning hota h ??

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    2. Vilom means Antynom, but here it represents irony, and utpreksha is a literary device in hindi which is known as the phenonmenon which is to be compared, itself becomes the comparer.

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    3. Ohh ok got... Well , u suggested an appropriate title... and I will give this title after some more suggestions and yeah many ppl might not be familiar with this word so I will try to find a paryayvachi for the same ...

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  2. हम में से अधिकांश व्यक्ति संसार में इस धारणा को अपने साथ लेकर आते है - "यह ठीक नहीं।" और समस्त जीवन हम घटनाओं, व्यक्तियों और परिस्थितियों को सुधारने का प्रयत्न करते हैं। परन्तु तुम कितना सुधार कर सकते हो? यह आसमान में बादलों को फिर से सजाने की चेष्टा के समान है। यह बीज तुम्हे खुश नहीं रहने देता, दिल से हँसने नही देता, प्रेममय और प्रिय होने नही देता। हर वक्त यह साथ रहता है एक काँटे की तरह - चुभता है, क्षुब्ध करता है। "यह ठीक नहीं" का यह बीज तुम्हे बार-बार इस संसार में वापस लाता है।
    इसे कैसे खत्म करें? बस, केवल पहचानो कि यह बीज है - गहन अन्तर्निरिक्षण और ध्यान द्वारा यह सम्भव है।
    कभी-कभी तुम्हें महसूस होता है कि तुम्हारा शरीर, मन, बुद्धि, स्मृति और अहं भी कुछ ठीक नहीं। या तो तुम उन्हें सही सिद्ध करना चाहते हो या उनमें त्रुटि देखते हो। परन्तु ये भी संसार के ही अंश है। जिसे तुम त्रुटि समझते हो, उसे पहचानो और ईश्वर को समर्पित कर दो।
    परम सत्ता की अनन्त व्यवस्था- शक्ति पर विश्वास करो और जो हो रहा है, उसके प्रति यह निष्ठा भाव रखो, "जो प्रभु की इच्छा।" फिर यह ठीक नहीं का बीज नष्ट हो जाता है। जो प्रभु की इच्छा पूर्ण सन्तुष्टि की अवस्था है, सम्पूर्ण प्रेम की स्थिति। हमको इसे भविष्य के लिए भी कथन बनाने की आवश्यकता नहीं - "प्रभु इच्छा ही घटित हो रही है।"


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  3. mujhe sab kuch samajh toh nai aaya iss comment me but haan itna samajh gya ki aap keh rhe hain ki "jo ho rha h ushe hone diya jae prabhu ki iccha maan kar".

    Aur haan mujhse exams ka nai padha jaa rha itna bada comment padhna n samajhna toh impossible sa h... Hum satsang karenge papa sabko samjhaenge .... lol :D

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