ना जाने किस मुकाम पर आ गई हूँ
हो गई हूँ पवित्र एक सति सी
या अपवित्र एक वेश्या सी
अब तक जो थी भोली बच्ची सी ।
ना जाने कहा है ईस मुकाम का डेरा
ना जाने कब होगा एक सुंदर सवेरा
ना जाने क्या हो पाएगी राह एकसी
ना जाने कब होगी सीता राम कि ।
सब्र हि इन्तेहा है
सब्र हि है माया
सब्र हि जवाब है
और सब्र हि काया ।
काश की लिख सकती मै और भी
काश की शब्द होते मेरे पास भी
काश की सोच सकती दैनिक कार्य से ऊपर उठकर
काश की बन सकती सीता राम की ।
इतिहास ने भी दिया जवाब है
ना राम ने कभी वचन तोडा है
ना सीता ने कभी धर्म छोडा है
और ना ही कभी बनी है सीता राम कि ।
हिमानी
PS- I can't find an appropriate title for this poem. This is my first poem in Hindi. And I am like reading these lines again and again...
हो गई हूँ पवित्र एक सति सी
या अपवित्र एक वेश्या सी
अब तक जो थी भोली बच्ची सी ।
ना जाने कहा है ईस मुकाम का डेरा
ना जाने कब होगा एक सुंदर सवेरा
ना जाने क्या हो पाएगी राह एकसी
ना जाने कब होगी सीता राम कि ।
सब्र हि इन्तेहा है
सब्र हि है माया
सब्र हि जवाब है
और सब्र हि काया ।
काश की लिख सकती मै और भी
काश की शब्द होते मेरे पास भी
काश की सोच सकती दैनिक कार्य से ऊपर उठकर
काश की बन सकती सीता राम की ।
इतिहास ने भी दिया जवाब है
ना राम ने कभी वचन तोडा है
ना सीता ने कभी धर्म छोडा है
और ना ही कभी बनी है सीता राम कि ।
हिमानी
PS- I can't find an appropriate title for this poem. This is my first poem in Hindi. And I am like reading these lines again and again...